जब महिलाये गर्भावस्था के दौर से गुजर रही होती हैं तो उनके अंतर्मन में बहुत सारे मनोभाव बनते बिगते रहते हैं। इस दौरान यही भावनात्मक बदलाव (Mood Swings) और चिड़चिड़ापन दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है। यह समय उनके लिए काफी मुश्किलों भरा होता है। गर्भावस्था के दौरान भावनात्मक बदलाव व चिड़चिड़ापन। Mood Swings & Irritations during Pregnancy(गर्भावस्था के दौरान भावनात्मक बदलाव व चिड़चिड़ापन)
हो सकता है किसी पल आप रुआँसी सी हों और फिर अगले ही पल आप बहुत खुशी महसूस करने लगें। मनोभावों में यह उतार-चढ़ाव गर्भावस्था में होने वाले हॉर्मोनों के बदलाव, तनाव, थकान और गर्भावस्था की आम परेशानियों की वजह से रहता है।
चूँकि ये भावनात्मक बदलाव (मूड स्विंग) उनके हर काम पर असर डालता है और चिड़चिड़ेपन की वजह से उनके रिश्तों पर और उनके व्यवहार पर असर पड़ता है तो आइये इस लेख में जानते हैं वो कौन से खास उपाए हैं जिनको अपनाकर इस समस्या से बचा जाये और कैसे इसे आसानी से दूर किया जाये।
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Mood Swings & Irritations during Pregnancy(गर्भावस्था के दौरान भावनात्मक बदलाव व चिड़चिड़ापन) के कारण
प्रेगनेंसी में मनोभावों में उतार-चढ़ाव होना आम है। इन सबके कई कारण हो सकते हैं जिनमे से हैं –
हार्मोन स्तरों में बदलाव
इसके सबसे प्रमुख कारणों में से एक है हार्मोन स्तरों में बदलाव होना। जब आप गर्भधारण करती हैं, तो आपके खून में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है। ये आपके शरीर को गर्भावस्था के लिए तैयार होने में मदद करते हैं, मगर ये आपके मूड को भी प्रभावित कर सकते हैं।
अन्य महत्वपूर्ण कारण
प्रेगनेंसी के शारीरिक लक्षण जैसे कि मिचली, भुलक्कड़पन, एसिडिटी, थकान और बार-बार पेशाब जाने की परेशानी भी आपको चिड़चिड़ा बना सकती हैं। जब आप गर्भावस्था के इन साइड इफेक्ट्स की वजह से परेशान हों तो हर समय खुश रह पाना मुश्किल हो सकता है।
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Pregnancy में Mood Swing के लक्षण
जब महिलाएं गर्भावस्था के दौर में होती हैं तो उनके शरीर में कई बदलाव आते हैं। यह बदलाव सकारात्मक भी हो सकते हैं और नकारात्मक भी। अपने और शिशु के भविष्य को लेकर आप काफी चिंतित, असुरक्षित या आशंकित महसूस कर सकती हैं।
- व्यवहार में बदलाव होना
- चिड़चिड़ापन महसूस करना
- बार-बार गुस्सा होना
- किसी बात पर जिद करना
- कभी-कभी लड़ाई करना
- घबराहट महसूस करना
- दिमाग में उलझन महसूस करना
- परेशानियों के लिए खुद को दोषी मानना
- अवसाद में चले जाना
- अचानक से मूड का अच्छा हो जाना
गर्भावस्था में मूड स्विंग की समस्या कब से कब तक रहती है
यह सही सही बता पाना संभव नहीं है की इसकी शुरुआत कब होती है लेकिन सामान्यतया गर्भवती महिलाओं में मनोभावों का उतार चढाव पांच से दस सप्ताह क दौरान शुरू हो जाता है और यह कुछ समय तक बढ़ने के बाद कम होने लगता है।
गर्भावस्था की दूसरी तिमाही तक आते आते ये समस्या कम होने लगती है क्योंकी तब तक आप अपने अंदर के कई सवालों का जवाब ढूंढ चुकी होती हैं या आपको कई समस्याओं का समाधान मिल चुका होता है साथ ही आपका शरीर भी इस अवस्था का आदि हो चूका रहता है तो आप अपने शरीर में होने वाली हॉर्मोन के बदलाव और उसके परिणाम को सम्हाल पाने में लगभग सक्षम हो चुके होते हैं।
कुछ खास उपाय जिनसे मूड स्विंग को कंट्रोल किया जा सकता है
व्यायाम, आराम, स्वस्थ आहार का सेवन और अपनी भावनाओं के बारे में बात करने से आपको बेहतर महसूस हो सकता है। मगर, यदि आप बहुत ज्यादा चिंतित या उदास हों और मूड स्विंग्स की वजह से आपके रोजमर्रा के काम प्रभावित हो रहे हों, तो डॉक्टर से बात करें। हो सकता है आपको मदद या सहयोग की जरुरत हो।
- पर्याप्त नींद : प्रेगनेंसी में शारीरिक बदलावों और अधिक मेहनत करने की वजह से थकान जल्दी हो जाती है। ऐसे में भरपूर आराम करें और नींद लें।
- एक्सरसाइज : डॉक्टर की सलाह पर प्रेगनेंट महिलाएं कुछ हल्की एक्सरसाइज कर सकती हैं। एक्सरसाइज से एंडोर्फिन हार्मोन रिलीज होता है जो रिलैक्स और खुश महसूस करवाता है। यह भी पढ़ें : प्रेगनेंट महिलाओं को एक्सरसाइज से कब बना लेनी चाहिए दूरी
- डायट : भोजन का सीधा असर आपके मूड पर पड़ता है। कैलोरी वाला फूड शरीर में शुगर लेवल को प्रभावित करता है जिससे मूड स्विंग्स ट्रिगर होते हैं। इसलिए इस समय पौष्टिक आहार लें।
- मालिश : डिलीवरी के बाद मालिश करवाई जाती है लेकिन आप प्रेगनेंसी स्ट्रेस को कम करने के लिए भी मालिश की मदद ले सकती हैं। इसके प्रेगनेंसी में पैदल चलना भी फायदेमंद होता है।
कुछ छोटे मगर प्रभावी उपाए जो आपका मूड बेहतर कर सकते हैं
- छोटी मोटी समस्याओं का खुद को दोषी न मानें
- मेडिटेशन करें
- सभी रंगीन मौसमी फल और सब्ज़ियों का सेवन करें
- वह करें जिससे आपको खुशी मिले
- रंगो से भरे आकर्षक कपडे पहने
- कोई पसंदीदा या अच्छी मूवी देखें
- दोस्तों/प्रियजनों के साथ लंच/डिनर पर
- अपना पसंदीदा संगीत सुनें
- समय समय पर अपने पति से अपने सभी मनोविचारों को साझा करते रहना चाहिए
- बच्चों से जुड़ाव महसूस करने के लिए अन्य बच्चों के साथ खुलकर बात करें और उनके साथ खुश रहने की कोशिश करें
- ऐसा काम करें जिसको करने से आपको ख़ुशी मिलती हो जैसे पेंटिंग, किताबें पढ़ना, हास्य कविताये या चुटकुले पढ़ना, कम म्हणत वाले घरेलु खेल, अंताक्षरी या लूडो आदि
कुछ ऐसी गंभीर या चिंताजनक परिस्थितिया जब आपको अपने चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए
- अगर लगे कि आपके मूड स्विंग्स बहुत ज्यादा बार और ज्यादा गंभीरता से हो रहे हैं।
- लंबे समय तक आप उदास, बेकार या नाउम्मीद महसूस करें।
- ऐसा लगे कि आप अपनी चिंताओं और बेचैनी को नियंत्रित नहीं कर पा रही हैं।
- जो काम आपको पसंद हैं उनमें अब आपकी रुचि नहीं है।
- आपको पेनिक अटैक हो रहे हैं।
- ध्यान लगाने या निर्णय लेने में मुश्किल हो रही है
- नींद आने या सोए रहने में मुश्किल हो रही है
- भूख कम हो गई है
- डिलीवरी से डर लग रहा है या प्रसव के दौरान मौत होने के ख्याल आ रहे हों
- खुद को या किसी अन्य को नुकसान पहुंचाने के ख्याल आ रहे हैं
गर्भावस्था से जुड़े मनोभाव के सवाल कुछ इस तरह के हो सकते हैं
- शिशु के स्वास्थ से जुडी बातें जैसे की वो स्वस्थ होगा की नहीं
- मै जो आहार ले रही हु वो बच्चे को कही कोई दुष्प्रभाव तो नहीं दे रहा
- परिवार की वित्तीय अवस्था भी एक वजह हो सकती है
- प्रसव पीड़ा सहने में मै सक्षम हूँ की नहीं
- गर्भावस्थ के परिणाम शरीर पर कैसा असर डालेंगे
- बच्चे के उदर के अंदर की स्थिति कैसी होगी
- अपने और पति के रिश्ते पर कैसा प्रभाव होगा
- पीछे गर्भावस्था के दौरान आई समस्या इस बार नै हीनता का विषय हो सकता है
- शारीरिक परिवर्तन जैसे मोटापा, स्टेच मार्क्स, मुहांसे आदि
- अपने बच्चे के लिए मै कैसी माँ साबित होउंगी
- गर्भावस्था क दौरान होने वाली छोटी मोटी समस्याओं का ज़िम्मेदार खुद को मानना
- काम काजी महिलाओं में उनके जॉब पर क्या असर पड़ेगा
नोट: गर्भावस्था के दौरान जरुरी है कि आप प्रोफेशनल मदद और उपचार लें। भावनात्मक स्वास्थ्य समस्याएं उपचार न करवाने पर आपके शिशु की सेहत पर असर डाल सकती हैं और आपको प्रसवोत्तर अवसाद होने का खतरा भी बढ़ सकता है। साइकोथैरेपी और मेडिटेशन दोनों इसमें प्रभावी हो सकते हैं।