प्रतिदिन नियमित रूप से 1 घंटे Yoga and Exercise करने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थय बेहतर होता है

वैज्ञानिक शोध और कई हेल्थ एक्सपर्ट का मानना है की बेहतर स्वस्थ्य के लिए योग एवं व्यायाम (Yoga and Exercise) एक अच्छा विकल्प है। अगर आप शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्त हैं तो यकीन मानिये आप स्वस्थ जीवन जी रहे हैं।

शरीर और मन दोनों को सेहतमंद बनाए रखने के लिए नियमित रूप से दिनचर्या में योगासनों को शामिल करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है। योगासन, शरीर में ऊर्जा के स्तर को बढ़ावा देने के साथ मन को शांत करते हैं।

जबकि नियमित रूप से व्यायाम करने से मेटाबॉलिज्म बेहतर होने के साथ ही कैलरी भी तेजी से बर्न होती है और वजन नियंत्रण में रहता है। नियमित व्यायाम शरीर ही नहीं बल्कि दिमाग को भी तेज रखने में उपयोगी साबित होता है। तनाव, सिर दर्द और अवसाद जैसी कई समस्याओं को नियमित व्यायाम की मदद से कम या ठीक किया जा सकता है।

योग एवं व्यायाम (Yoga and exercise) के लाभ

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक कई तरह की बीमारियों के जोखिम को कम करने से लेकर सेहत को बूस्ट देने तक के लिए योग एवं व्यायाम (Yoga and exercise) करना सहायक हो सकता है।

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योग yoga के लाभ

योगसिद्धि एवं शरीर शुद्धि के लिए योगासन जरूरी है । यही कारण है कि आज विज्ञान के इस दौर में योगा शिक्षा प्राप्त करने के लोग इच्छुक हैं । सरल शब्दों में कहें तो सुखपूर्वक एवं निश्चल बैठने की मुद्रा ही योग आसन कहलाती है ।

Yoga and Exercise

प्राणायाम से लेकर कई तरह की योग मुद्राओं का अभ्यास आपको शारीरिक-मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में मददगार हो सकते हैं। नियमित योग के फायदे हैं-

  • रक्तचाप और हृदय गति को नियंत्रित रखने में मदद करता है।
  • शरीर को आराम मिलता है।
  • आपके आत्मविश्वास में सुधार होता है।
  • तनाव की समस्या कम होती है।
  • शरीर के समन्वय में सुधार होता है।
  • आपकी एकाग्रता में सुधार होता है।
  • बेहतर नींद प्राप्त करने में मदद करता है।
  • पाचन और डायबिटीज की समस्या से राहत दिला सकता है।

व्यायाम Exercise के लाभ

व्यायाम वह शारीरिक गतिविधि है जो बार बार निश्चित समय व अनुशासन में करने पर शरीर को स्वस्थ रखने के साथ व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को भी बढाती है। नियमित एक्सरसाइज (वर्जिश / व्यायाम) करने से-

  • मांसपेशियां स्वस्थ व बलिष्ठ रहती हैं।
  • शरीर में ताज़गी एवं स्फूर्ति बने रहती है।
  • चेहरे का तेज बना रेता है।
  • शरीर में खून का बहाव बेहतर ढंग से होता है जिससे रक्तचाप सामान्य रहता है।
  • मेटाबॉलिज्म बेहतर होने के साथ कैलरी भी तेजी से बर्न होती है व वजन नियंत्रण में रहता है।
  • नियमित व्यायाम अवसाद व तनाव दूर करने में भी सहायक होता है।
  • शरीर में हानिकारक कोलेस्ट्रॉल की मात्रा घटती है व अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है।

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Yoga and Exercise

योग एवं व्यायाम Yoga and Exercise में भिन्नता

योग सिर्फ एक कसरत नहीं है। कसरत में तो आप सिर्फ शारीरिक प्रक्रिया करते हैं लेकिन योग में आप शारीरिक, मानसिक एवं भावानात्मक प्रक्रिया करते हैं। योग एवं व्यायाम (Yoga and Exercise) में कई सारी भिन्नताएं हैं –

  • योग में सांसों पर संतुलन रखना सिखाया जाता है और आसन के आधार पर सांस लेनी होती है, जबकि व्यायाम में सांसो का संतुलन आवश्यक नहीं होता और तो और इसमें सांसे तेज़ हो जाती हैं।
  • योगासन आंतरिक अंगों पर अधिक प्रभावी होता है, जबकि व्यायाम से शरीर बाहर से बलिष्ठ व सुडोल बनता है।
  • योगासन में सरीर शिथिल व स्थिर किया जाता हैं, जबकि व्यायाम में शरीर की कासाहट पर ज़ोर दिया जाता है।
  • योग से पाचन शक्ति धीमे होती है, एक्सरसाइज से पाचन शक्ति तेज हो जाती है।
  • योग में भूख कम होती है, जबकि व्यायाम में भूख ज्यादा लगती है।
  • योग करते समय ऊर्जा धीरे-धीरे खर्च होती है, जिससे आप थकते नहीं, वहीं व्यायाम में तेजी से ऊर्जा खर्च होती है जिससे आप थक जाते हैं

योगासन और व्यायाम (Yoga and Exercise) का महत्व

नियमित योग करने पर आंतरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर दिख सकता है। योगासन का मानसिक स्थिरता में बड़ा महत्व है। इससे कई समस्याओं को पनपने से रोका और उनके लक्षणों को कम किया जा सकता है। बस योग का लाभ पाने के लिए इसे रोजाना करते रहें।

  • दिमाग को केंद्रित करने में मददगार
  • मन को शांत करने में फायदेमंद
  • धैर्य को बढ़ा देता है
  • अवसाद एवं द्विध्रुवी विकार में होता है सुधार
  • आत्मविश्वास बनाने में है मददगार

नियमित व्यायाम के ढेरो फायदे हैं जो कि सीधे तौर पर हमारे स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं। व्यायाम का शारीरिक विकास एवं गतिशीलता में बड़ा महत्व है-

  • व्यायाम करने से वजन कम होता है
  • वर्जिश से मांसपेशिया मजबूत होती हैं
  • इससे हड्डिया मज़बूत होती हैं
  • नियमित कययम से बिमारियों का खतरा काम हो जाता है
  • इससे शरीर कि त्वचा स्वस्थ रहती है
  • व्यायाम से शारीरिक और मानसिक बल मिलता है
  • नियमित वर्जिश से पुराने दर्द से रहत मिल सकती है
  • बढ़ती उम्र का असर काम करता है नियमित व्यायाम

योग के प्रकार

योग अनेको तरह के हो सकते हैं परन्तु ठीक-ठीक कहना तो मुश्किल है कि योग के प्रकार कितने हैं, फिर भी हम यहां आमतौर पर चर्चा में आने वाले प्रकारों के बारे में बता रहे हैं –

राज योग

राज का अर्थ है सम्राट। सम्राट स्व-अधीन होकर, आत्म विश्वास और आश्वासन के साथ कार्य करता है। इसी प्रकार एक राजयोगी भी स्वायत्त, स्वतंत्र और निर्भय है। राज-योग आत्मानुशासन और अभ्यास का मार्ग है। राजयोग को अष्टांग-योग भी कहते हैं क्योंकि इसे आठ-योगों (चरणों) में संगठित किया जाता है।

राजयोग के ये आठ चरण आन्तरिक शान्ति, स्पष्टता, आत्म सयंम और ईश्वरानुभूति के लिए विधिवत अनुदेश एवं शिक्षा प्रदान करते है, वे हैं:-

  • यम-आत्म नियंत्रण
  • नियम-अनुशासन
  • आसन-शारीरिक व्यायाम
  • प्राणायाम-श्वास व्यायाम
  • प्रत्याहार-बाह्य पदार्थों से इन्द्रियों को अनासक्त कर लेना
  • धारणा-एकाग्रता
  • ध्यान-मन को ईश्वर में लगाना
  • समाधि-पूर्ण ईश्वरानुभूति

ज्ञान योग

इस योग को बुद्धि का मार्ग माना गया है। यह योग अपनी और अपने परिवेश को अनुभव करने के माध्यम से समझना है | ज्ञान योग के जरिए आत्मा शुद्ध होती है और हम अपने आप को आत्मा से जोड़ पाते हैं ।

ज्ञानयोग से तात्पर्य है – ‘विशुद्ध आत्मस्वरूप का ज्ञान’ या ‘आत्मचैतन्य की अनुभूति’ है। इसे उपनिषदों में ब्रह्मानुभूति भी कहा गया है।  इसे करने से दिमाग शांत रहता है और याददाश्त तेज बनी रहती है। इस योग को काफी कठिन योग माना गया है।

कर्म योग

श्रीकृष्ण ने भी गीता में कहा है ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ यानी कुशलतापूर्वक काम करना ही योग है। कर्म योग का सिद्धांत है कि हम वर्तमान में जो कुछ भी अनुभव करते हैं, वो हमारे पूर्व कर्मों पर आधारित होता है साथ ही गीता में कहा गया कि कर्म योग “दूसरों के लाभ के लिए किए गए निस्वार्थ कर्म” की साधना है ।

कर्म योग कर्म के माध्यम से मोक्ष (आध्यात्मिक मुक्ति) तक पहुंचने का मार्ग है। गृहस्थ लोगों के लिए यह योग सबसे उपयुक्त माना गया है।

भक्ति योग

भक्ति का अर्थ दिव्य प्रेम और योग का अर्थ जुड़ना है। ईश्वर, सृष्टि, प्राणियों, पशु-पक्षियों आदि के प्रति प्रेम, समर्पण भाव और निष्ठा को ही भक्ति योग माना गया है। भक्ति योग किसी भी उम्र, धर्म, राष्ट्र, निर्धन व अमीर व्यक्ति कर सकता है। भक्ति वह नहीं जो हम करते हैं या जो हमारे पास है  – अपितु वह जो हम हैं। और इसी की चेतना, इसी का ज्ञान ही भक्ति योग है।

परम चेतना का अनुभव और उसके अतिरिक्त और कुछ नहीं – मैं सबसे अलग हूँ – इस बात का विच्छेद, इसको भूल जाना ; संसार, जगत द्वारा दी हुई सभी पहचान का विस्मरण, उस परम चेतना, अंतहीन सर्वयापी प्रेम से मिलन, साक्षात्कार, प्रति क्षण अनुभव ही वास्तव में भक्ति योग है।

हठ योग

हठयोग की प्राचीन परिभाषा- हठयोग दो शब्दों के मेल से बना है। इसमें ‘ह’ शब्द को सूर्य से जोड़कर देखा जाता है। वहीं ‘ठ’ शब्द को चन्द्र से जोड़ा गया है। इस प्रकार में शरीर में मौजूद चन्द्र (शीतलता का प्रतीक) और सूर्य (ऊर्जा का प्रतीक) की शक्ति को संतुलित करने के उद्देश्य से किए जाने वाले योग को हठयोग कहा जाता है।

हठ में ह का अर्थ हकार यानी दाई नासिका स्वर, जिसे पिंगला नाड़ी कहते हैं। वहीं, ठ का अर्थ ठकार यानी बाई नासिका स्वर, जिसे इड़ा नाड़ी कहते हैं, जबकि योग दोनों को जोड़ने का काम करता है। हठ योग के जरिए इन दोनों नाड़ियों के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया जाता है।

कुंडलिनी योग

कुण्डलिनी योग आध्यात्मिक विकासकी यात्रा का विज्ञान है। कुंडलिनी योग के माध्यम से तेजी से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास एक साथ होता है। इस योग के अनुसार मानव शरीर में सात चक्र होते हैं। जब ध्यान के माध्यम से कुंडलिनी को जागृत किया जाता है, तो शक्ति जागृत होकर मस्तिष्क की ओर जाती है।

इस दौरान वह सभी सातों चक्रों को क्रियाशील करती है। इस प्रक्रिया को ही कुंडलिनी/लय योग कहा जाता है। इसमें मनुष्य बाहर के बंधनों से मुक्त होकर भीतर पैदा होने वाले शब्दों को सुनने का प्रयास करता है, जिसे नाद कहा जाता है। इस प्रकार के अभ्यास से मन की चंचलता खत्म होती है और एकाग्रता बढ़ती है।

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योगासन के नियम

योगाभ्यास करनेवाले साधकों का यह कर्तव्य है कि वे उनसे संबंधित ये कुछ नियम जान लें और उन्हें आचरण में ले आयें-

समय

आसन प्रातः सायं दोनों समय कर सकते हैं। यदि दोनों समय नहीं कर सकते तो प्रातः काल का समय अति उत्तम है।

स्थान

स्वच्छ शांत एवं एकांत स्थान आसन के लिए उत्तम है ।यदि वृक्षों के हरियाली के समीप बाग, तालाब या नदी का किनारा हो तो और भी उत्तम है। खुले वातावरण एवं वृक्षों के नजदीक ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा मिलती है। जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है।

वेशभूषा

आसन करते समय शरीर पर वस्त्र कम, सुविधाजनक व ढीले होने चाहिए ।

आसन व मात्रा

भूमि पर बिछाने के लिए मुलायम दरी या कंबल का प्रयोग करना उचित होता है। खुली जमीन पर आसन न करें। अपने सामर्थ्य के अनुसार व्यायाम करना चाहिए। आसनों का पूर्ण अभ्यास 1 घंटे में, मध्यम अभ्यास आधा घंटे में, तथा संक्षिप्त अभ्यास 15 मिनट में होता है।

आयु

वृद्ध एवं दुर्बल व्यक्तियों को आसन एवं प्राणायाम अल्प मात्रा में करना चाहिए। 10 वर्ष से अधिक आयु के बालक सभी योगिक अभ्यास कर सकते हैं।

अवस्था एवं सावधानियां

सभी अवस्थाओं में आसन व प्राणायाम किये जा सकते हैं परंतु फिर भी कुछ ऐसे आसन हैं। जिनको रोगी व्यक्ति को नहीं करना चाहिए। तथा जिनका कान बहता हो, नेत्रों में लाली हो, स्नायु एवं हृदय दुर्बल हो, उनको शीर्षासन व अधिक भारी आसन जैसे पूर्ण शलभासन, धनुरासन आदि नहीं करना चाहिए। उच्च रक्तचाप वाले रोगियों को सिर के बल किए जाने वाले शीर्षासन आदि तथा महिलाओं को रितु काल में चार-पांच दिन आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

भोजन

भोजन योगासन के लगभग आधे घंटे पश्चात करना चाहिए। भोजन में सात्विक पदार्थों तले हुए गरिष्ठ पदार्थों का सेवन से जठर विकृत हो जाता है। आसन के बाद चाय नहीं पीनी चाहिए ।

श्वास- प्रश्वास का नियम

योगासन करते समय सामान्य नियम है। कि आगे की ओर झुकते समय श्वास बाहर निकालते हैं, तथा पीछे की ओर झुकते समय श्वास अंदर भरकर रखते हैं। स्वास नासिका से ही लेना वा छोड़ना चाहिए। मुख से नहीं, क्योंकि नाक से लिया हुआ स्वास फिल्टर होकर अंदर जाता है।

द्रष्टि

आंखें बंद करके योगासन करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है। जिससे मानसिक तनाव एवं चंचलता दूर होती है। सामान्यता आसन एवं प्राणायाम आंखें खोल कर भी कर सकते हैं।

क्रम

कुछ योगासन एवं  पार्श्व  करने होते हैं, यदि कोई आसन दाईं करवट करें ,तो उसे बाई करवट भी करें। इसके अतिरिक्त आसनों का एक ऐसा क्रम निश्चित कर लें, कि प्रत्येक अनुवर्ती आसन से विघटित दिशा में भी पेशियों और संधियों का व्यायाम हो जाए। उदाहरणतया सर्वांगासन के उपरांत मत्स्यासन ,मंडूकासन के बाद उष्ट्रासन किया जाए।

विश्राम

आसन करते समय जब जब थकान का अनुभव हो तब शवासन या मकरासन में विश्राम करना चाहिए। थक जाने के बीच में भी विश्राम कर सकते हैं।

शरीर का तापमान

शरीर का तापमान अधिक उष्ण होने पर या ज्वर होने की स्थिति में योगाभ्यास करने से तापमान बढ़ जाए तो चंद्र स्वर यानी बाई नासिका से श्वास अंदर खींचकर को रखकर सूर्य स्वर यानी दाईं नासिका से रेचक श्वास बाहर निकालना करने की विधि बार- बार करके तापमान सामान्य कर लेना चाहिए।

कठिन आसन

जिन व्यक्तियों को कभी अस्थि भंग हुआ है। जैसे जिनकी हड्डियां कभी टूटी हुई है ।वह कठिन आसनों का अभ्यास न करें। अन्यथा उसी स्थान पर दोबारा हड्डी टूट सकती है।

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