विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों (Various Medical Practices) के अनुसार मनुष्यों में पाए जाने वाले Disease (रोगों) को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है। शारीरिक और मानसिक रोग। इस लेख में हम Disease (रोगों) के प्रकार एवं उनके लक्षण के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे।
शरीर के सामान्य कार्यों में श्वसन, पाचन, उत्सर्जन, रक्त परिसंचरण, व गतिशीलता आदि क्रियाओं अर्थात कार्यों का वर्णन आता है। वह अवस्था जब शरीर अपने इन कार्यो को सामान्य रुप से करने में अक्षम होता है, शारीरिक रोग कहलाते हैं।
इसी प्रकार मन के सामान्य कार्यो में मानसिक सोच-विचार, मनन-चिन्तन, व मानसिक संवेग- आवेग आदि क्रियाओं का समावेश होता है, वह अवस्था जब मन अपने इन कार्यों को सामान्य रुप से करने में असक्ष्म होता है, मानसिक रोग अथवा मनोरोग कहलातें हैं।
विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में रोग की परिभाषा (Disease according to Various Medical Practices)
एलोपैथी जिसे आधुनिक चिकित्सा शास्त्र कहते हैं, में अधिकांश रोगों का कारण जीवाणुओं को माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) के कुपित होने को रोग का कारण माना गया है। विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों (Various Medical Practices) में रोगों (Disease ) को कई प्रकार से परिभाषित और वर्णित किया गया है
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एलोपैथी चिकित्सा के अनुसार
शरीर में भौतिक कारणों से रासायनिक असन्तुलन होने पर अथवा बाहय रोगाणु के संक्रमण होने पर शरीर की चयापचय दर सन्तुलन का बिगडने का अर्थ रोग है।
आयुर्वेद के अनुसार
आयुर्वेद शास्त्र में शरीर के वात पित्त व कफ नामक त्रिदोषों, अग्नियों, धातुओं व मलों की विषम अवस्था को रोग के अर्थ में लिया जाता है। इसके साथ साथ इन्द्रियों, मन व आत्मा की प्रसन्न अवस्था स्वास्थ्य जबकि इनकी दुखद का अर्थ रोग Disease है।
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार
प्राकृतिक चिकित्सा में शरीर की उत्पत्ति का आधार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश नामक पंचमहाभूतों को माना गया गया है, शरीर में इन पंचमहाभूतों का समयोग स्वास्थ्य तथा इन महाभूतों की विषम अवस्था का अर्थ रोग Disease है।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा के अनुसार
एक्यूप्रेशर चिकित्सा में शरीर के आन्तरिक अगों की ऊर्जा को स्वास्थ्य के अर्थ में लिया जाता है, शरीर से इस ऊर्जा के क्षय का अर्थ रोग है। इसके साथ साथ शरीर में विषाक्त तत्वों (होमोटाक्सिन्स) की श्रृख्ंला बनने का अर्थ रोग Disease है।
रोग (व्याधि/बीमारी) के कारण
शास्त्रों व विद्वानों के मत में रोग के विभिन्न कारण बताये गए हैं। प्रत्येक कार्य के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है तो रोग होने के पीछे भी कोई कारण तो अवश्य ही है।
रोग के कारण के संदर्भ में अलग अलग चिकित्सा पद्धतियां अलग अलग धारणाएं रखती हैं। विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों (Various Medical Practices) के अनुसार मनुष्यों में पाए जाने वाले Disease (रोगों) का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
एलोपैथी चिकित्सा (आधुनिक चिकित्सा विज्ञान) के अनुसार
एलोपैथी चिकित्सा पद्धति के अनुसार शरीर में बाहय रोगाणु (जीवाणु अथवा विषाणु) का संक्रमण रोग का मूल कारण है।
बाहय भौतिक कारण (दुर्घटनाएं व प्रदूषण) रोग के प्रमुख कारण हैं। इसके साथ साथ भोजन से शरीर लिए आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त नही होने पर शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं।
शरीर में स्रावित होने वाले हार्मोन्स भी रोगों के लिए जिम्मेदार होते हैं। शरीर में हार्मोन्स के असन्तुलन होने पर भी शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं।
आयुर्वेद चिकित्सा के अनुसार
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के अनुसार विकृत आहार विहार रोग का मूल कारण होता है। विकृत आहार विहार के कारण शरीर के वात पित्त कफ नामक त्रिदोषों में विकृति उत्पन्न होती है, जिसके कारण शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में अप्राकृतिक जीवन यापन एवं अप्राकृतिक आहार विहार को रोग Disease के मूल कारण के रुप में स्वीकार किया जाता है। इसके अनुसार अप्राकृतिक जीवन यापन एवं अप्राकृतिक आहार विहार के कारण शरीर में विजातीय पदार्थो का भण्डारण होने लगता है ।
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एक्यूप्रेशर चिकित्सा के अनुसार
एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के अनुसार कार्य करते समय शरीर में विषक्त तत्वों (होमोटाक्सिन्स) की उत्पत्ति होती है। शरीर में ये विषाक्त तत्व एक श्रृख्ंला का निर्माण कर लेते हैं। यह श्रृख्ंला जिस अंग अथवा स्थान पर बनती है, उस अंग अथवा स्थान में ऊर्जा प्रवाह बाधित हो जाता है परिणाम स्वरूप उस अंग से सम्बन्धित रोग उत्पन्न हो जाता है।
योग चिकित्सा एवं प्राण चिकित्सा के अनुसार
योग चिकित्सा एवं प्राण चिकित्सा के अनुसार शरीर में जीवनी शक्ति का ह्रास होना ही रोग Disease का मूल कारण है। विकृत आहार विहार एवं योगमय जीवनशैली के स्थान पर भोगमय जीवनशैली (दिनचर्या, रात्रिचर्या व ऋतुचर्या का पालन नही करना) का अनुकरण करने से जब शरीर में विषाक्त तत्वों की मात्रा बढ जाती है तब शरीर की जीवनी शक्ति कम हो जाती है तथा शरीर रोगों से ग्रस्त हो जाता है।
रोग के प्रकार
कई आधार पर मानव रोगों को विभाजित किया जा सकता है –

मनुष्य के कार्य करने की क्षमता और मनोदशा के आधार पर रोगों Disease को निम्न प्रकार से विभाजित किया जाता है
इन आधार पर रोगों Disease को निम्न प्रकार से विभाजित किया जाता है। वो हैं –
- मानसिक
- शारीरिक
शारीरिक रोग
आधुनिक विज्ञान मानव शरीर को कुल ग्यारह तंत्रों में विभाजित करता है। जब तक शरीर के ये तंत्र अपने कार्यों को भली भातिं सम्पादित करते रहते हैं तब तक यह शरीर स्वस्थ बना रहता है किन्तु जब इन तंत्रों में विकार उत्पन्न हो जाता है और ये तंत्र अपने कार्यों को भली भातिं सम्पादित करने में असक्ष्म हो जाते हैं, शरीर की यह अवस्था शारीरिक रोग कहलाती है। मनुष्य के शारीरिक रोगों को हम इस प्रकार वर्गीकरत कर सकते हैं-
पाचन तंत्र के रोग:
पाचन तंत्र के द्वारा भोजन के पाचन, अवशोषण एवं निष्कासन की क्रिया को सही प्रकार नही करने की अवस्था पाचन तंत्र के रोग Disease कहलाती है। इसके अन्र्तगत अपच, एसाडिटी, मधुमेह एवं कब्ज आदि रोगों का वर्णन आता है।
श्वसन तंत्र के रोग:
श्वसन तंत्र के द्वारा बाहय वायुमण्डल से आक्सीजन एवं शरीर से कार्बन डाई आक्साइड के आदान प्रदान की क्रिया को सही प्रकार नही करने की अवस्था श्वसन तंत्र के रोग Disease कहलाती है। इसके अन्र्तगत खांसी, जुकाम एवं दमा आदि रोगों का वर्णन आता है।
उत्सर्जन तंत्र के रोग:
उत्सर्जी पदार्थो को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को सही प्रकार नही करने की अवस्था उत्सर्जन तंत्र के रोग कहलाती है। इसके अन्र्तगत वृक्क शोथ, वृक्क प्रदाह, वृक्क में पथरी एवं बहुमूत्र आदि रोगों का वर्णन आता है।
अस्थि तंत्र के रोग:
शरीर को आकार प्रदान करने वाली अस्थियों एवं उपास्थियों में विेकृति अस्थि तंत्र के रोग कहलाती है। इसके अन्र्तगत हड्यिों में टेडापन तथा जोडों मे दर्द आदि रोगों का वर्णन आता है।
पेशिय तंत्र के रोग:
शरीर को गति प्रदान करने वाली माॅसपेशियों की विेकृति पेशिय तंत्र के रोग कहलाती है इसके अन्र्तगत पेशियों में दर्द, पेशियों में जकडन तथा पेशियों में सूजन आदि रोगों का वर्णन आता है।
अध्यावरणीय तंत्र के रोग:
सम्पूर्ण शरीर को सुरक्षात्मक आवरण प्रदान करने वाली त्वचा से सम्बन्धित रोग अध्यावरणीय तंत्र के रोग कहलाती है। इसके अन्र्तगत त्वचा में खुजली, दाने, फोडे फुसीं आदि रोगों का वर्णन आता है।
रक्त परिसंचसण तंत्र के रोग:
सम्पूर्ण शरीर में परिभ्रमण करने वाली शरीर की महत्वपूर्ण धातु रक्त एवं हृदय की विकृति रक्त परिसंचरण तंत्र के रोग कहलाती है। इसके अन्र्तगत रक्त अल्पता, उच्च व निम्न रक्तचाप तथा हृदय से सम्बन्धित रोगों का वर्णन आता है।
अन्तःस्रावी तंत्र के रोग:
विभिन्न हार्मोन्स के द्वारा शरीर की चयापचय दर को सन्तुलित करने वाली अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से सम्बन्धित रोग अन्तःस्रावी तन्त्र के रोग कहलाते है। इसके अन्र्तगत मधुमेह, थायराइड, बौनापन व बाँझपन आदि रोगों का वर्णन आता है।
प्रतिरक्षा तंत्र के रोग:
बाहय वातावरण में उपस्थित विषाणुओं, जीवाणुओं एवं रोगाणुओं से शरीर की सुरक्षा सही प्रकार नही करने की अवस्था प्रतिरक्षा तंत्र के रोग कहलाती है। इसके अन्र्तगत जुकाम, बुखार एवं हैजा आदि रोगों का वर्णन आता है।
तंत्रिका तंत्र के रोग:
शरीर की आन्तरिक एवं बाहय क्रियाओं को नियंत्रित करने वाले मस्तिष्क एवं नाडियों द्वारा सही प्रकार कार्य नही करने की अवस्था तंत्रिका तंत्र के रोग कहलाती है। इसके अन्र्तगत नर्वस विकनैस, दुर्बल स्मरण शक्ति, हाथों व पैरौं में कम्पन्न एवं तंत्रिकाओं से सम्बन्धित रोगों का वर्णन आता है।
प्रजनन तंत्र के रोग:
अपने वंश को आगे बढाने हेतु अपने समान रुप रंग एवं गुण कर्म स्वभाव वाली सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता में कमी की अवस्था प्रजनन तंत्र के रोग कहलाती है। इसके अन्र्तगत बाँझपन आदि रोगों का वर्णन आता है।
मानसिक रोग
मनुष्य द्वारा मानसिक क्रियाओं अथवा कार्यों को भली प्रकार सम्पादित नही कर पाने की अवस्था मानसिक रोग Disease कहलाती है। मन में अपनी एक विषेश प्रकार की ऊर्जा होती है जिसे मानसिक ऊर्जा की संज्ञा दी जाती है।
इसके माध्यम से विभिन्न मानसिक कार्य किए जाते हैं, विषयों पर विचार मंथन किया जाता है, तर्क वितर्क किया जाता है, पूर्व की अनुभूतियों को संचित किया जाता है तथा भविष्य की योजनाओं का निर्माण किया जाता है।
जब इस मानसिक ऊर्जा में वृद्धि अथवा कमी (असन्तुलन) हो जाती है तब इस असन्तुलन की अवस्था में उपरोक्त मानसिक कार्य भली भांति सम्पादित नही हो पाते अथवा इन मानसिक कार्यो में बाधा उत्पन्न होने लगती है, इस अवस्था को मानसिक रोग अथवा मनोरोग कहा जाता है।
प्रकृति, गुण और प्रसार के कारणों के आधार पर
इन कारणों के आधार पर रोग दो प्रकार के होते हैं – जन्मजात रोग (Congenital disease) और अर्जित रोग (Acquired disease)
जन्मजात रोग (Congenital disease)
ऐसे रोगों को कहा जाता है जो नवजात शिशु में जन्म के समय से ही विद्यमान होते हैं। ये रोग आनुवांशिक अनियमितताओं या उपापचयी विकारों (Metabolism disorder) या किसी अंग के सही तरीके से काम नहीं करने की वजह से होते हैं। ये मूल रूप से स्थायी रोग हैं जिन्हें आमतौर पर आसानी से दूर नहीं किया जा सकता है।
जैसे – आनुवंशिकता के कारण बच्चों में कटे हुए होंठ (हर्लिप), कटे हुए तालु, हाथीपाँव जैसी बीमारियां, गुणसूत्रों में असंतुलन की वजह से मंगोलिज्म (Mongolian idiocy) जैसी बीमारी, हृदय संबंधी रोग की वजह से बच्चा नीले रंग का पैदा होना आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।
अर्जित रोग (Acquired disease)
ऐसे रोगों या विकारों को कहते हैं जो जन्मजात नहीं होते लेकिन विभिन्न कारणों और कारकों की वजह से हो जाते हैं। इन्हें निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा जा सकता है:
संचायी या संक्रामक रोग (communicable or infectious disease)
ये रोग कई प्रकार के रोगजनक वायरस (virus), बैक्टीरिया (becteria, प्रोटोजोआ (Protozoa), कवक (Fungus) और कीड़ों की वजह से होते हैं। ये रोगजनक आमतौर पर रोगवाहकों की मदद से एक जगह से दूसरे जगह फैलते हैं
रोग का नाम | रोगाणु का नाम | प्रभावित अंग | लक्षण |
हैजा | बिबियो कोलेरी | पाचन तंत्र | उल्टी व दस्त, शरीर में ऐंठन एवं डिहाइड्रेशन |
टी. बी. | माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस | फेफड़े | खांसी, बुखार, छाती में दर्द, मुँह से रक्त आना |
कुकुरखांसी | वैसिलम परटूसिस | फेफड़ा | बार-बार खांसी का आना |
न्यूमोनिया | डिप्लोकोकस न्यूमोनियाई | फेफड़े | छाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी |
ब्रोंकाइटिस | जीवाणु | श्वसन तंत्र | छाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी |
प्लूरिसी | जीवाणु | फेफड़े | छाती में दर्द, बुखार, सांस लेने में परेशानी |
प्लेग | पास्चुरेला पेस्टिस | लिम्फ गंथियां | शरीर में दर्द एवं तेज बुखार, आँखों का लाल होना तथा गिल्टी का निकलना |
डिप्थीरिया | कोर्नी वैक्ट्रियम | गला | गलशोथ, श्वांस लेने में दिक्कत |
कोढ़ | माइक्रोबैक्टीरियम लेप्र | तंत्रिका तंत्र | अंगुलियों का कट-कट कर गिरना, शरीर पर दाग |
टाइफायड | टाइफी सालमोनेल | आंत | बुखार का तीव्र गति से चढऩा, पेट में दिक्कत और बदहजमी |
टिटेनस | क्लोस्टेडियम टिटोनाई | मेरुरज्जु | मांसपेशियों में संकुचन एवं शरीर का बेडौल होना |
सुजाक | नाइजेरिया गोनोरी | प्रजनन अंग | जेनिटल ट्रैक्ट में शोथ एवं घाव, मूत्र त्याग में परेशानी |
सिफलिस | ट्रिपोनेमा पैडेडम | प्रजनन अंग | जेनिटल ट्रैक्ट में शोथ एवं घाव, मूत्र त्याग में परेशानी |
मेनिनजाइटिस | ट्रिपोनेमा पैडेडम | मस्तिष्क | सरदर्द, बुखार, उल्टी एवं बेहोशी |
इंफ्लूएंजा | फिफर्स वैसिलस | श्वसन तंत्र | नाक से पानी आना, सिरदर्द, आँखों में दर्द |
ट्रैकोमा | बैक्टीरिया | आँख | सरदर्द, आँख दर्द |
राइनाटिस | एलजेनटस | नाक | नाक का बंद होना, सरदर्द |
स्कारलेट ज्वर | बैक्टीरिया | श्वसन तंत्र | बुखार |
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गैर–संचारी या गैर–संक्रामक रोग या अपक्षयी रोग (degenerative disease)
ये रोग Disease मनुष्य के शरीर में कुछ अंगों या अंग प्रणाली के सही तरीके से काम नहीं करने की वजह से होते हैं। इनमे से कई रोग पोषक तत्वों, खनिजों या विटामिनों की कमी से भी होते हैं, जैसे – कैंसर, एलर्जी इत्यादि।
रक्ताधान की वजह से फैलने वाले रोग
एड्स AIDS (एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसिएंसी सिंड्रोम – Acquired immunodeficiency syndrome) इस रोग में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो जाती है और यह इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस (एचआईवी – human immunodeficiency virus) की वजह से होता है। HIV दो प्रकार के होते हैं: –
- HIV-1
- HIV-2
एड्स से संबंधित फिलहाल सबसे आम वायरस HIV-1 है। अफ्रीका के जंगली हरे बंदरों के खून में पाया जाने वाला सिमीयन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस (एसआईवी) HIV-2 के जैसा ही है। एचआईवी एक रेट्रोवायरस है। यह RNA से DNA बना सकता है। HIV से प्रभावित होने वाली प्रमुख कोशिका सहायक टी– लिम्फोसाइट (T– Lymphocyte ) है।
यह कोशिका सीडी–4 रेसेप्टर के रूप में होती हैं। एचआईवी धीरे– धीरे टी–लिम्फोसाइट्स (T– Lymphocyte ) को नष्ट कर देता है। जिसके कारण मरीज में कभी–कभी लिम्फ नोड्स में हल्का सूजन, लंबे समय तक चलने वाला बुखार, डायरिया या अन्य गैर– विशिष्ट लक्षण दिखाई देते हैं।
रोग का नाम | प्रभावित अंग | लक्षण |
गलसुआ (Mumps) | पेरोटिड लार ग्रंथियां (parotid salivary glands) | लार ग्रन्थियों में सूजन, अग्न्याशय, अण्डाशय और वृषण में सूजन, बुखार, सिरदर्द। इस रोग से बांझपन होने का खतरा रहता है। |
फ्लू या इन्फ्लूएंजा (Flu) | श्वसन तंत्र (Respiratory system) | बुखार, शरीर में पीड़ा, सिरदर्द, जुकाम, खांसी |
रेबीज या हाइड्रोफोबिया (Rabies) | तंत्रिका तंत्र (Nervous system) | बुखार, शरीर में पीड़ा, पानी से भय, मांसपेशियों तथा श्वसन तंत्र में लकवा, बेहोशी, बेचैनी। यह एक घातक रोग है। |
खसरा (Measles) | पूरा शरीर (Total Body) | बुखार, पीड़ा, पूरे शरीर में खुजली, आँखों में जलन, आँख और नाक से द्रव का बहना |
चेचक (Smallpox) | पूरा शरीर विशेष रूप से चेहरा व हाथ-पैर (Total Body mainly Face or hand or foot) | बुखार, पीड़ा, जलन व बेचैनी, पूरे शरीर में फफोले |
पोलियो (Polio) | तंत्रिका तंत्र (Nervous system) | मांसपेशियों के संकुचन में अवरोध तथा हाथ-पैर में लकवा |
हर्पीज (Genital herpes) | त्वचा, श्लष्मकला (Skin) | त्वचा में जलन, बेचैनी, शरीर पर फोड़े |
इन्सेफलाइटिस (Encephalitis) | तंत्रिका तंत्र (Nervous system ) | बुखार, बेचैनी, दृष्टि दोष, अनिद्रा, बेहोशी। यह एक घातक रोग है |
अन्य बीमारियां
- कैंसर (Cancer): यह रोग कोशिकाओँ के अनियंत्रित विकास और विभाजन के कारण होता है जिसमें कोशिकाओं का गांठ बन जाता है, जिसे नियोप्लाज्म (Neoplasm) कहते हैं। शरीर के किसी खास हिस्से में असामान्य और लगातार कोशिका विभाजन को ट्यूमर कहा जाता है।
- गाउट (Gout): पाँव के जोड़ों में यूरिक अम्ल के कणों के जमा होने से यह रोग होता है। यह यूरिक अम्ल के जन्मजात उपापचय से जुड़ी बीमारी है जो यूरिक अम्ल के उत्सर्जन के साथ बढ़ जाता है।
- हीमोफीलिया (Hemophilia): हीमोफीलिया को ब्लीडर्स रोग कहते हैं। यह लिंग से संबंधित रोग है। हीमोफीलिया के मरीज में, खून का थक्का बनने की क्षमता बहुत कम होती है।
- हीमोफीलिया ए (Hemophilia A): यह एंटी– हीमोफीलिया ग्लोब्युलिन फैक्टर– VIII की कमी की वजह से होता है। हीमोफीलिया के पांच में से करीब चार मामले इसी प्रकार के होते हैं।
- हीमोफीलिया बी (Hemophilia B) या क्रिस्मस डिजीज: प्लाज्मा थ्रम्बोप्लास्टिक (plasma thromboplastic) घटक में दोष के कारण होता है।
- हेपेटाइटिस (Hepatitis): यह एक विषाणुजनित रोग है जो यकृत को प्रभावित करता है, जिसके कारण लीवर कैंसर या पीलिया नाम की बीमारी हो जाती है। यह रोग मल द्वारा या मुंह द्वारा फैलता है। बच्चे और युवा व्यस्कों में यह रोग होने की संभावना अधिक होती है और अभी तक इसका कोई टीका नहीं बन पाया है।